• June 2, 2022

विश्व पर्यावरण दिवस: आओ मिलकर पेड़ लगाये और बचाएं…

विश्व पर्यावरण दिवस: आओ मिलकर पेड़ लगाये और बचाएं…

तपती दोपहरी में किसी भी राहगीर को विश्रांति करने के लिए किसी सघन हरे वृक्ष की तलाश रहती है, चाहे वह पैदल हो, दोपहिया या चौपहिया वाहन पर सवार ही हो। क्यों ? क्योंकि हम अपने और अपने वाहन को चिलचिलाती धूप और भयंकर गर्मी से राहत पाने के लिए एकमात्र सड़क किनारे लगे वृक्षों का ही सहारा होता है इसलिए उनकी तलाश में जुट जाते हैं। उस समय वृक्ष और उसकी छाया नहीं मिलने पर लोगों को कोसते हैं |कि आज अंधाधुंध कटाई और पैसा कमाने के चक्कर मलोग हरे वृक्षों की बलि चढ़ा देते हैं, और मन में स्वंय पेड़ लगाने का संकल्प ले लेते हैं | जैसे ही वहां से निवृत हो जीवन के अन्य कार्यों में व्यस्त होते ही उस मन के द्वंद को बिसरा देते हैं, और उसके बाद इस पीड़ा की जब तक याद नहीं आती जब दोबारा पेड की जरूरत नहीं पड़ जाए। जब परिवार, मित्रों के साथ छुट्टियां बिताने या घूमने जाने हेतु क्यों हम सभी हरे-भरे वृक्षों से आच्छादित प्राकृतिक वातावरण में जाना पसंद करते हैं | क्यों उस समय शहर की भागम- भाग की जिंदगी से दूर प्रकृति के बीच जाना पसंद करते हैं। सुबह जल्दी उठकर सड़कों की जगह पार्को में क्यों घूमना पसंद करते हैं, क्यों मन बार-बार प्रकृति के बीच जाने के लिए लालायित रहता है, क्यों बालक- किशोर- युवा- प्रौढ़ प्रकृति की गोद में जाना पसंद करता है।| इतनी प्रगाढ़ इच्छाओं और खुशी पाने के लिए जब हम प्रयास करते हैं फिर भी हमें प्रकृति संरक्षण और वृक्षारोपण की चिंता नही करते है चिंता है तो बड़ी बड़ी गगन चुंबी इमारतों की। अगर ऐसा ही रहा तो वो दिन दूर नहीं कि हमें ऊंची ऊंची इमारते तो खूब दिखेगी लेकिन हरे-भरे पेड़ और प्रकृति अवशेष के रूप में संग्रहालयों में ही नजर आएगी।


अभी कुछ आकड़ों पर जाये तो हमारी आंखे फटी रह जायेगी की दिन-ब-दिन हम हमारी धरोहर ओर अपनी पहचान खो रहे है। अभी UN की ताजा रिपोर्ट में जहां प्रति व्यक्ति वृक्षों की संख्या में केनाडा 8953 प्रतिव्यक्ति वृक्षों के साथ श्रेष्ठ स्थान पर है जहां विश्व में 400 से अधिक वृक्ष प्रतिव्यक्ति औषत है, वही भारत में वर्तमान में केवल 28 वृक्ष प्रतिव्यक्ति का आंकड़ा है, ये हमे सोचने को मजबूर कर रहा है की गिरावट इसी प्रकार ही जारी रही तो वाकई वृक्ष ढुढ़ने से नही मिलेंगे। हमें प्राण वायु की हमारे जीवन में महत्वता कोविडकाल ने भली भांति परिचित करवा दिया उसके बावजूद आंकड़ा बढ़ने के स्थान पर लगातार कम हो रहा है। इतनी चेतावनियों के बाद भी हम इस और ध्यान क्यो नही दे पा रहे। सोचते-सोचते रहने का और ध्यान देने का समय जा चुका है, अब वक्त है एक्शन मोड पर पूर्ण सक्रियता से आगे बढ़ने की जरूरत है। ताकि हम समय रहते परिस्थितियों को संभाल सके। गुजरे कोरोना काल के दिन याद है जब हम एक-एक श्वास के लिए भटकते नजर आए थे।

 

उठ जाग मुसाफिर भोर भई अब रैन कहां जो सोवत है। स्थितियों ने इशारा कर दिया है बस आगे आने वाले इस खतरे को भांप कर जहां एक और केवल हम पौधा लगाने का आग्रह किया करते थे, अब उसे पालने की जिम्मेदारी भी उठानी होगी। एक तरफ जहां पेड़ लगाने के आंकड़ों का काम जारी है, उसे हमें उसे धरातल पर लाना होगा। पेड़ लगाने से जिम्मेदारी पूर्ण नहीं होगी बल्कि उन्हें एक बालक की तरह पाल पोष कर बड़ा करना होगा ताकि आने वाले समय में वह हमारी रक्षा कर सकें। हमारे यहां भारतीय संस्कृति में हमेशा रक्षा के लिए बहन भाई को जिस प्रकार अपनी रक्षा के लिए रक्षा सूत्र बांधती है, उसी की भांति ही मानव द्वारा प्रकृति पूजा के साथ वृक्षों को भी रक्षा सूत्र बांधा जाता रहा है, ताकि विपरीत परिस्थितियों में वह हमारी रक्षा कर सकें।

 

भारतीय संस्कृति और परंपराओं में हमने सदैव पृथ्वी को मां का दर्जा देकर पूजा अर्चना की है, इसका एक ही कारण था हमारी प्रकृति पृथ्वी एक बालक के समान हमारा पोषण करती है, तो हमारा भी कर्तव्य बनता है कि हम एक पुत्र की भांति सदैव धरती माता का सम्मान और संरक्षण करें लेकिन व्यक्तिगत स्वार्थों ने मनुष्य को इतना नीचे गिरा दिया कि उसके लिए पृथ्वी माता के संरक्षण को छोड़ उसी के दोहन में लग गए और यही कारण है की अति दोहन की वजह से पर्यावरण के खिलाफ जाने से हमें अनेक प्राकृतिक आपदाओं का सामना करना पड़ रहा है, इसी खतरे को देखते हुए संयुक्त राष्ट्र संघ ने इस वर्ष 2022 के विश्व पर्यावरण दिवस की थीम “केवल एक पृथ्वी” के आधार पर ‘प्रकृति के साथ सद्भाव में रहना’ पर ध्यान केंद्रित किया है! जब संयुक्त राष्ट्र संघ को ही यह महसूस हो गया कि पर्यावरण संरक्षण के लिए पृथ्वी के साथ सद्भाव में रहना होगा। हमें केवल एक पृथ्वी को सर्वमान्य मानते हुए ध्यान केंद्रित करना होगा उसके संरक्षण के लिए।

तो आइए साथियों इस पर्यावरण दिवस पर अपनी धरती माता के संरक्षण के लिए कटिबद्ध हो जाएं 135 करोड़ से अधिक संताने मिलकर पृथ्वी माता के संरक्षण और श्रृंगार के लिए सज्ज हो जाये। आओ मिलकर पेड़ लगाएं धरती को स्वर्ग बनाए हर घर में हरियाली हो बच्चे बूढ़े पेड़ों के संरक्षण के लिए बलशाली हों आओ मिलकर पेड़ लगाएं आओ मिलकर धरती माँ को बचाएं। हर व्यक्ति को कम से कम पांच पेड़ लगाकर उनका संरक्षण अवश्य करें!

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