• September 15, 2022

जानिए 2022 में कब रखा जायेगा करवा चौथ का व्रत , क्या है पूजा विधि और शुभ – मुहर्त

जानिए 2022 में कब रखा जायेगा करवा चौथ का व्रत , क्या है पूजा विधि और शुभ – मुहर्त

इंटरनेट डेस्क। हिंदू धर्म में करवा चौथ व्रत का विशेष महत्व है। हिंदू पंचांग के अनुसार, कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को सभी सुहागन महिलाए करवा चौथ व्रत रखती है। और अपने पति की लंबी आयु और वैवाहिक जीवन खुशहाल की कामना के लिए व्रत रखती हैं। यह व्रत को सभी व्रतों में कठिन माना जाता है। यह व्रत पूरे दिन निर्जला रखा जाता है।और शाम को चंद्रदयो होने पर सौलह श्रृंगार करके चाँद दर्शन करके पति के हाथो से जल ग्रहण करके ही व्रत का पारण किया जाता है। आइए जानते हैं 2022 में करवा चौथ व्रत कब रखा जायेगा ,पूजा का शुभ मुहूर्त, और करवा चौथ पूजन विधि क्या है ।

करवा चौथ 2022 तिथि :-
कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी प्रारंभ – 13 अक्टूबर को सुबह 01 बजकर 59 मिनट से शुरू होकर कार्तिक माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी समाप्त – 14 अक्टूबर को सुबह 03 बजकर 08 मिनट तक.

पूजा का शुभ मुहूर्त :-
13 अक्टूबर को शाम 06 बजकर 01 मिनट से लेकर रात 07 बजकर 15 मिनट तक रहेगा एवं चंद्रोदय समय – 13 अक्टूबर रात 08 बजकर 19 मिनट और उपवास का समय- 13 अक्टूबर सुबह 6 बजकर 26 मिनट से रात 8 बजकर 27 मिनट तक

करवा चौथ 2022 का शुभ मुहूर्त
करवा चौथ पर अमृत काल शाम 04 बजकर 08 मिनट से शाम 05 बजकर 50 मिनट तक रहेगा। इसके बाद अभिजीत मुहूर्त सुबह 11 बजकर 21 मिनट से दोपहर 12 बजकर 07 मिनट तक रहेगा।

करवा चौथ पूजा विधि
करवा चौथ की सुबह जल्दी उठकर स्नान कर लें। और स्वच्छ वस्त्र धारण करे और सूर्योदयसे पहले ही सरगी करले इसके बाद ,मंदिर की साफ- सफाई कर ज्योत जलाएं। और प्रथम पूज्य गणेश जी और चौथ माता की कहानी सुने कहानी सुनते समय एक चौकी पर लाल कपड़ा बिछाकर जल से भरा कलश रखे और पूजा की थाली तैयार करे जिसमे रोली, मोली , गेहूं, गुड ,और एक मिटटी के करवे में चावल भरकर स्वास्तिक बनाकर ढक्कन सहित रख लें।साथ ही बायने के लिए तेरह करवे रोली से सतीया लगाकर भी रख लें। कहानी सुनने के बाद सबसे पहले एक करवे पर हाथ फेर के वह करवा अपनी सास के पैर छूकर सास को देऔर अपनी सास का आशीर्वाद ले । इसके बाद रोली सतीया लगे हुए खांड के तेरह करवे सुहागिन महिलाओं को बायने में देने चाहिए और सुहागिनों से ही लेने चाहिए। इसके बाद रात्रि को सौलह श्रृंगार करके जल से भरा कलश और तेरह दाने गेहूं के चंद्रमा को अर्घ्य देने के लिए अलग रख लें। रात्रि को जब चंद्र दर्शन और चंद्रमा को अर्घ्य देकर पति के हाथो से जल ग्रहण करके अपने उपवास का पारण करे।

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